कलसी में सम्राट अशोक के शिलालेखों की कहानी

कलसी में सम्राट अशोक के शिलालेखों की कहानी

देहरादून का नाम ज़हन में आते ही ऊंचे-ऊंचे पेड़, दूर-दूर तक फैली पहाडियां, सुहावना मौसम और माहौल का आनंद लेते सैलानियों के झुंड, ऑंखों के सामने घूमने लगते हैं। देहरादून भारत के सबसे मशहूर हिल स्टेशनों में एक है। लेकिन बहुत कम लोग ये जानते हैं, कि यहाँ से सिर्फ़ 44 कि.मी. दूर एक अनूठा स्थान है कलसी, जिसका इतिहास 250 ई.पू. से शुरु होता है। यहाँ महान मौर्य सम्राट अशोक के पत्थरों पर लिखे फ़रमान हैं, जो उत्तर भारत में अशोक के सर्वश्रेष्ठ संरक्षित शिला-लेखों में से एक हैं।

हिमाचल प्रदेश के साथ सीमा के निकट कलसी का अपना एक इतिहास है। प्राचीन समय में इसे कलकूट के नाम से जाना जाता था,  जो कुणिंद जनपद का एक हिस्सा हुआ करता था। ये लगभग 5वीं सदी ई.पू. में एक समृद्ध जनपद (गणराज्य) था। यह प्राचीन समृद्ध शहर श्रुघना (वर्तमान में हरियाणा में सुंग) के पास ही स्थित था, जिसका उल्लेख चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने किया था। यह शहर यमुना और उसकी सहायक तमसा (टोंस) नदी के संगम पर स्थित है, जिसकी वजह से इसे एक पवित्र तीर्थ-स्थल माना जाता है। यही नहीं,  निचले हिमालय को पवित्र स्थलों जैसे हरिद्वार और ऋषिकेश से जोड़ने वाले अधिकांश मार्ग इसी क्षेत्र से होकर गुज़रते थे। इन तमाम वजहों से अशोक के लिये शिला-लेख बनवाने का ये एक आदर्श स्थल था।

कलसी में शिलालेख की चट्टान | विकिमीडिआ कॉमन्स

मौर्य वंश का तीसरा शासक अशोक (शासनकाल 273-236 ई.पू.) प्राचीन भारत के सबसे शक्तिशाली शासकों में से एक था, जिसका साम्राज्य लगभग पूरे उपमहाद्वीप (तमिलनाडु और केरल के अधिकांश क्षेत्रों को छोड़कर) में फैला हुआ था। इस शक्तिशाली सम्राट के इतिहास की पुख़्ता जानकारी का सबसे प्रामाणिक और मुख्य स्रोत उसके शिला-लेख हैं। देशभर में अशोक के शिला-लेख, जिन्हें ‘फ़रमान’ के रूप में जाना जाता है, की संख्या लगभग तीस है। पत्थरों और चट्टानों की सतहों पर विषय-वस्तु के आधार पर उंकेरे गये शिला-लेखों को  प्रमुख शिला-लेखों, लघु शिला-लेखों, प्रमुख-स्तंभ शिला-लेखों, लघु-स्तंभ शिला-लेखों और गुफा शिला-लेखों में वर्गीकृत किया गया है। प्रमुख शिला-लेखों और स्तंभ शिला-लेखों पर नैतिक और राजनीतिक पहलुओं पर लिखा जाता था, जबकि लघु शिला-लेखों और लघु स्तंभ शिला-लेखों पर धार्मिक उपदेश उकेरे जाते थे । चट्टानों पर उकेरे गये लेख अशोक के संरक्षण में, मौर्य काल के दौरान बौद्ध धर्म के प्रसार के शुरुआती स्रोतों में से एक हैं।

भारत में अलग अलग स्थान पर अशोक के शिलालेख

दिलचस्प बात यह है, कि मौर्यकालीन राजधानी पाटलिपुत्र में एक भी शिला-लेख नहीं बनवाया गया था। अशोक के सभी शिला-लेख उसके राज्य की सीमाओं और महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्गों और तीर्थ-स्थलों पर थे। ये सभी शिला-लेख ऐसे इलाक़ों में थे, जहां बहुत आवाजाही रहती थी ताकि अशोक का संदेश ज़्यादा से ज़्यादा लोगों और विभिन्न समुदायों तक पहुंचे सके।

लेकिन सवाल ये है कि अशोक ने अपने शिला-लेख अलग-अलग जगहों पर इतने विस्तार से क्यों बनवाए? अपने राज्य का विस्तार करते समय अशोक भौगोलिक स्थिति की वजह से कलिंग पर क़ब्ज़ा करना चाहता था। कलिंग बंगाल की खाड़ी में व्यापार का एक स्थापित केंद्र था। कलिंग युद्ध अशोक की ज़िंदगी का एक अहम मोड़ साबित हुआ। विनाशकारी कलिंग युद्ध ने अशोक पर गहरा प्रभाव छोड़ा। युद्ध में हुई बरबादी की शर्म में डूबे अशोक ने बौद्ध धर्म अपना लिया, और धम्म की अपनी समझ के आधार पर उसने अपने राज्य में शिला-लेख बनवाये।

इनमें से अशोक के 14 प्रमुख शिला-लेख हैं, जिनमें मुख्य रुप से अधिकारियों और उत्तराधिकारियों को निर्देश दिये गये थे, कि राज्य और प्रशासन को कैसे चलाया जाये।

सन 1860 के दशक की शुरुआत में फ़ॉरेस्ट नाम के एक अंग्रेज़ ने कलसी में अशोक के शिला-लेखों की खोज की थी। लेकिन कीचड़ में सने इन शिला-लेखों की हालत इतनी ख़राब थी, कि इन्हें पढ़ा जाना मुमकिन ही नहीं था। लेकिन तमाम गंदगी हटाने के बाद जो चीज़ निकली, वो अशोक के सबसे अच्छी तरह संरक्षित प्रमुख शिला-लेख थे। दस फ़ुट के एक चमकीले विशाल पत्थर पर अंकित ये शिला-लेख ब्राह्मी लिपि और पाली भाषा में लिखे गए थे।

कलसी का शिलालेख एक सुरक्षित स्थान पर रखा है | विकिमीडिआ कॉमन्स

देश के विभिन्न हिस्सों में पाए जाने वाले प्रमुख शिला-लेखों की विषय-वस्तु लगभग एक जैसी है, हालांकि इलाक़े के आधार पर भाषा में थोड़ा फ़र्क़ है। इन शिला-लेखों से हमें अशोक के शासन और उसके व्यव्हार में आये बदलाओं की जानकारी मिलती है। अशोक पशु बलि के सख़्त ख़िलाफ़ था। उसने धार्मिक सहनशीलता की अहमियत पर ज़ोर दिया, और इस बात को ज़्यादा लोगों तक फैलाने के लिए उसने धम्म-यात्राएं शुरु कीं थीं। राज्यभर में धम्म-महामात्र नियुक्त किए गए , जिनका असली काम धर्म की स्थापना और इसका प्रचार करना था। अशोक ने इंसानों और जानवरों दोनों के लिए चिकित्सा सेवाएं भी मुहैया करवाईं। गिरनार जैसे अन्य स्थानों में पहले 12 शिला-लेख भी बहुत अच्छी तरह से संभालकर रखे गये हैं, लेकिन कलसी के शिला-लेखों में  शिला-लेख XIII सबसे ख़ास है, जो कहीं से भी टूटा-फूटा नहीं है। शिला-लेख XII इबारत भी बहुत दिलचस्प है। इसमें लिखा है कि कैसे कलिंग युद्ध ने अशोक को पूरी तरह से बदल दिया था, और धम्म का मार्ग अपनाने के लिए प्रेरित कर दिया था।

“आठ साल पहले जब राजा देवनमपिया पियादसी का अभिषेक हुआ, तभी उसने कलिंगवासियो पर विजय प्राप्त की थी। युद्ध के लिये एक लाख पचास हज़ार पुरुषों को भेजा गया था। वहां मारे गए पुरुषों की संख्या एक लाख थी और इससे कई गुना ज़्यादा अन्य लोग मारे गए थे। कलिंग जीतने के बाद देवनमपिया ने लोगों को प्रेम और नैतिकता का पाठ पढ़ाने में ख़ुद को समर्पित कर दिया। ये देवनमपिया का कलिंग देश जीतने का पश्याताप है।

कलसी का शिलालेख- दक्षिण से | विकिमीडिआ कॉमन्स

ख़ूनी युद्ध के बाद अशोक ने ये महसूस किया, कि धम्म के ज़रिये हासिल की गई जीत ही सबसे अच्छी जीत होती है, और जिसे उसने आख़िरकार अपने पड़ोसी राज्यों चोल, भोज, कंभोज और पांड्य पर हासिल की। संभवतः शिला-लेख XIII की उल्लेखनीय विशेषताओं में से एक है, यूनानी दुनिया के पांच राजाओं के नाम जिनके पास अशोक ने अपने दूत भेजे थे। विद्वानों के अनुसार, ये थे सीरिया का एंटिओकस थियोस (शासनकाल 263-246 ई.पू.), मिस्र का टॉलेमी फ़िलाडेल्फ़स (शासनकाल 285-246 ई.पू), मैसेडोनिया का एंटिगोनस गोनाटस (शासनकाल 277-239 ई.पू.), साइरीन (मौजूदा समय में लीबिया) का मगस (शासनकाल 276-250 ई.पू) और कुरिन्थ का एलेक्ज़ेंडर (263 ई.पू)।

कलसी शिला-लेख की एक और ख़ासियत चट्टान के उत्तरी भाग पर खुदी हुई एक हाथी की आकृति है। इस पर गजतम  लिखा हुआ है, जिसका अर्थ है सर्वश्रेष्ठ हाथी। दिलचस्प बात यह है, कि ओडिशा के धौली में एक प्रमुख शिला-लेख पर एक हाथी की छवि है। हालांकि गिरनार शिला-लेख में हाथी की कोई मूर्ति या छवि नहीं है, शिला-लेख के नीचे एक पंक्ति सर्व स्वेतो हस्ती सर्व लोक सुख घरो नमा लिखी हुई है, जिसका अर्थ है ‘पूरे विश्व के लिए खुशी का जनक’ नाम का एकदम सफ़ेद हाथी’।

चट्टान के उत्तरी भाग पर खुदी हुई एक हाथी की आकृति | विकिमीडिआ कॉमन्स

कुछ विद्वानों का मानना ​​है, कि शिला-लेखों में बताया गया हाथी दरअसल बुद्ध का प्रतीक था और इसका संबंध उनके जन्म की कथा से जुड़ा था। (उनकी मां रानी माया ने सपना देखा था, कि छह दांतों वाला एक सफेद हाथी उसके गर्भ में प्रवेश कर रहा है)।

आज कलसी शिला-लेख भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संरक्षित स्मारक है। इसके चारों ओर ढांचा बनाकर इसे अच्छी तरह से सुरक्षित रखा गया है।

आप यह भी पढ़ सकते हैं
Ad Banner
close

Subscribe to our
Free Newsletter!

Join our mailing list to receive the latest news and updates from our team.

Loading