हिमाचल का अंद्रेटा गांव: जिसकी रग रग में बसी हैं कलाएं

हिमाचल का अंद्रेटा गांव: जिसकी रग रग में बसी हैं कलाएं

हिमाचल प्रदेश का पालमपुर ज़िला देश की रक्षा के लिये प्राण न्यौछावर करने वाले सैनिकों के लिये जाना जाता है, लेकिन यहां एक ऐसा गांव भी है, जहां से आज़ादी के पहले कई मशहूर कलाकार निकले हैं, जिनकी विरासत भारतीय कलाकारों की जमात में आज भी ज़िन्दा है।

पालमपुर शहर से 12 कि.मी. दूर स्थित आर्टिस्ट कॉलोनी नाम से प्रसिद्ध अंद्रेटा गांव एक तरफ़ शिवालिक और दूसरी तरफ़ धौलाधर पर्वत से घिरा हुआ है।

अंद्रेटा गांव

इस मनोहारी गांव में आपको नाट्य, मिट्टी के बर्तन बनाने और चित्रकारी जैसी विविध कलाओं का मिश्रण देखने को मिलेगा। यहां नोरा सेंटर फ़ॉर आर्ट्स, अंद्रेटा पॉट्री एंड क्राफ़्ट सोसाइटी, नोरा मड हाउस और सर शोभा सिंह आर्ट गैलरी जैसी जैसे कला-केंद्र हैं। लेकिन क्या आपको पता है, कि इस गांव को किसी भारतीय ने नहीं बसाया था?

अंद्रेटा गांव का इतिहास मध्य 20वीं सदी से शुरु होता है। यहां सबसे पहले आयरलैंड की प्रसिद्ध थियेटर कर्मी और नाटककार नोरा रिचर्ड्स आकर बसी थीं।

सन 1873 में जन्मीं और ऑक्सफ़ोर्ड जैसे प्रसिद्ध संस्थान से पढ़ाई करके निकली नोरा ने सरकारी कॉलेज के प्रोफ़ेसर फ़िलिप रिचर्ड्स से शादी की और सन 1908 में लाहौर पहुंच गईं। समय के साथ वह अपने कॉलेज की सांस्क़ृतिक गतिविधियों में दिलचस्पी लेनी लगीं। इस दौरान वह पंजाबी थियेटर से जुड़ गईं जो अपने शरुआती दौर में था। यहां उन्होंने पश्चिमी नाटकों को पंजाबी समाज में व्याप्त सामाजिक विषयों में ढालकर उनका मंचन किया।

समय के साथ नोरा लाहौर के दयाल सिंह कॉलेज की उप-प्रधानाचार्या बन गईं। सन 1920 में फिलिप की बीमारी से मृत्यु हो गई और नोरा को इंग्लैंड वापस जाना पड़ा। इंग्लैंड में उन्हें लाहौर के प्रसिद्ध समाजसेवी दयाल सिंह मजीठा का पत्र मिला। दयाल सिंह ने ही उनकी शादी के समय उनके पति को लाहौर कॉलेज में नौकरी देने की पेशकश की थी।

नोरा रिचर्ड्स

उप-प्रधानाचार्या पद पर रहते हुए नोरा के, कला के प्रति उत्साह को देखते हुए, दयाल ने नोरा को वापस भारत आने की सलाह दी और नोरा सन 1924 में भारत वापस आ गईं।

दूर-दराज़ के इलाकों में ग्रामवासियों में नाटक के ज़रिये जागरुकता फ़ैलाने के लिये नोरा अंद्रेटा गांव में बस गईं, जहां वह एक बार अपने पति फ़िलिप के साथ आईं थीं और उन्हें यहां का माहौल बहुत भाया था।

ग्रामीण थियेटर की रुपरेखा बनाने के बाद नोरा ने कांगड़ा के आयुक्त से उन्हें कुछ ज़मीन देने का आग्रह किया। आयुक्त ने उन्हें 15 एकड़ ज़मीन आवंटित कर दी, जहां नोरा ने अपने लिये अंग्रेज़-शैली का एक कॉटेज बनवाया, जो मिट्टी, पत्थर और बांस का बना था। इसे गांव के राजगीरों ने बनाया था।

नोरा के कॉटेज के बारे में एक पट्टिका

नोरा ने गांव में एक अस्थायी नाट्य मंच तैयार किया, जहां उन्होंने नाटक सीखने और करने के लिये पंजाबी थियेटर के शौकिया और पेशेवर लोगों को बुलाया। बाद में ये गांव ‘मेम दा पिंड’ (मेमसाहब का गांव) के नाम से मशहूर हो गया।

अंद्रेटा में नोरा ने सन 1940 और सन 1960 के दशक में और नाटक लिखकर पंजाबी थियेटर की परवरिश की और युवा स्थानीय कलाकारों को नाटक लिखने और उन्हें खेलने के लिये प्रोत्साहित किया।

नोरा द्वारा तैयार किया गया पहला पंजाबी नाटक - दुल्हन (1914 )

नोरा नाटक का मंचन करने या फिर खेलने के प्रस्तुति में मदद करती थीं, जिसकी वजह से उन्हें ‘पंजाबी थियेटर की दादी मां’ अथवा ‘लेडी ग्रेगोरी ऑफ़ पंजाब’ कहा जाने लगा।

डॉ. हरचरण सिंह, बलवंत गार्गी और गुरचरण सिंह जैसे पंजाबी थियेटर के मशहूर नाम यहीं से उभरे।

नोरा के आकर्षण से सिनेमा भी अछूता नहीं रहा । सन 1930 के अंतिम और सन 1940 के आरंभिक दशकों में हिंदी सिनेमा के दिग्गज पृथ्वीराज कपूर अपने प्रोफ़ेसर जय दयाल के कहने पर यहां रहे थे। यहां उन्होंने नाटक सीखा और मुंबई जाकर इप्टा (इंडियन पीपुल्स थियेटर एसोसिएशन) में शामिल हुए। इसके बाद उन्होंने मुंबई में अपनी थियेटर कंपनी “पृथ्वी थियेटर” की स्थापना की। शोभा सिंह द्वारा उनकी बनाई गई अर्ध-प्रतिमा अंद्रेता में सरदार शोभा सिंह संग्रहालय में आज भी मौजूद है।

सन 1940 के दशकों में कई मशहूर कलाकार अंद्रेटा आए। यहां नोरा ने प्रसिद्ध चित्रकार और मूर्तिकार भावेश चंद्र सन्याल और प्रोफ़ेसर जय दयाल को आमंत्रित किया था, जो लाहौर में उनके पति के छात्र रहे थे। जय दयाल ने नोरा के कामकाज में उनकी मदद की। धर्मशाला के सरकारी कॉलेज में अंग्रेज़ी के अध्यापक पद से रिटायर होने के बाद जय दयाल अंद्रेता में नोरा के पड़ौसी बन गये। अंद्रेटा में, जय दयाल ने ही पृथ्वीराज कपूर का परिचय थियेटर की दुनिया से करवाया था।

अंद्रेटा में पृथ्वीराज कपूर और शोभा सिंह

सन्याल ने, दिल्ली में ललित कला अकादमी स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। वह रिचर्ड्स से मिलने अंद्रेता आया करते थे। उन्होंने यहां मिट्टी और ईंटों का एक कॉटेज बनाया था जहां वह छुट्टियों में दिल्ली से आकर चित्रकारी किया करते थे। उन्होंने अंद्रेता में नोरा के कई नाटकों की अपनी चित्रकारी से पृष्ठभूमि बनाई थी।

सन 1947 में विभाजन की वजह से शोभा सिंह को मजबूरन मुंबई से जाना पड़ा। शोभा सिंह सिख गुरुओं और पंजाबी लोक-कथाओं की चित्रकारी के लिये जाने जाते हैं। लाहौर के दिनों से नोरा के पुराने दोस्त रहे शोभा सिंह ने अंद्रेटा आकर सिख गुरुओं, उनके जीवन और उनके कामों के कई चित्र बनाये थे। सोहनी-महिवाल की प्रेम कहानी पर आधारित उनकी चित्रकारी आज भी सबसे प्रसिद्ध चित्रकारी मानी जाती है, जो उन्होंने सन 1937 में बनाई थी। उन्होंने कई पौराणिक चरित्रों और पंजाब तथा हिमाचल की लोक-कथाओं को अपनी चित्रकारी का विषय बनाया। अपनी चित्रकारी को लेकर उन्होंने गैलरी बनाई। वह सन 1986 में निधन होने तक अंद्रेटा में ही रहे। उनकी चित्रकारी आज भी शोभा सिंह आर्ट गैलरी में देखी जा सकती हैं, जिसकी देखरेख अब उनका परिवार करता है।

शोभा सिंह

अपने लेखन से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान करने और फिर आज़ादी के बाद समाज कल्याण मंत्रालय से जुड़ने के बाद अभिनेता कबीर बेदी की मां और रिचर्ड्स की दोस्त फ़्रेडा बेदी अंद्रेटा में बस गईं। उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया और कुछ समय तक गांव में रहीं। सन 1950 के दशक में वह बर्मा में संयुक्त राष्ट्र सोशल सर्विस प्लानिंग कमिशन का हिस्सा थीं और तभी वह बौद्ध धर्म से प्रभावित हुईं। महिलाओं और बच्चों के लिये शिक्षा के केंद्र शुरु करने के उद्देश्य से वह कांगड़ा घाटी आई थीं और तभी उन्होंने अपना कुछ समय अंद्रेटा में बिताया था।

अंद्रेटा के ठंडा मौसम और कलात्मक माहौल की वजह से और भी कलाकार यहां आने लगे। यहीं से दिल्ली ब्लू आर्ट पॉट्री हाट की शुरुआत हुई। मिट्टी से बर्तन बनाने की ये कला, मिट्टी के बर्तनों की ईरानी शैली से प्रेरित थी। यहां मिट्टी और कोबात्ट नील को मिलाकर बर्तन बनाये जाते थे। सन 1952 में प्रसिद्ध कुम्हार सरदार गुरचरण सिंह ने भारत में स्टूडियो पॉट्री की नींव डाली। उन्होंने यहां पॉट्री यूनिट बनाई थी। सन 1995 में मृत्यु तक वह यहीं काम करते रहे।

उनके पुत्र मनसिमरन ने अपनी अंग्रेज़ पत्नी मैरी सिंह के साथ मिलकर सन 1983 में अंद्रेटा पॉट्री एंड क्राफ़्ट सोसाइटी की शुरुआत की। ये सोसाइटी न सिर्फ़ सारे विश्व में अपने उत्पाद बेचती है, बल्कि छात्रों को मिट्टी के बर्तन बनाना भी सिखाती है। सोसाइटी बनाने के अलावा, उन्होंने अंद्रेटा में पॉट्री एंड क्राफ़्ट सोसाइटी संग्रहालय की भी स्थापना की, जिसमें हिमाचल के गांव के मिट्टी के बर्तनों का संपूर्ण संग्रह होता था। आज इस तरह से बर्तन विलुप्त होने की कगार पर हैं। उन्होंने कुम्हारों को मदद मुहैया कराने के लिये सेंट्रल गवर्मेंट रुरल मार्किटिंग सेंटर भी बनाया। आज अंद्रेटा के मिट्टी के बर्तन देश भर में बिकते हैं।

अंद्रेटा में पॉटरी की एक कार्यशाला

दिल्ली आर्ट पॉट्री पूरे देश में लोकप्रिय हो गई। ये विरासत आज भी दिल्ली के सफ़दरजंग इलाक़े में दिल्ली ब्लू पॉट्री ट्रस्ट की वजह से फलफूल रही है। इस ट्रस्ट की स्थापना गुरचरण ने की थी, जिसकी अब देखरेख छात्र करते हैं।

नोरा, हर साल मार्च के महीने में एक सप्ताहिक समारोह का आयोजन करती थीं जिसमें खुले रंगमंच पर छात्र और ग्रामवासी नाटक खेला करते थे। ये रंगमंच उन्होंने अपनी ज़मीन पर बनवाया था। नियमित रूप से आनेवालों मेहमानों में पृथ्वीराज कपूर और बलराज साहनी शामिल थे।

नोरा के नाटक सामाजिक सुधारों के बारे में होते थे, जिन्हें वह ख़ुद लिखती थीं। बाक़ी लोग नाटक की प्रस्तुति से जुड़े अन्य पक्षों में मदद किया करते थे। नोरा ने अख़बारों में लेख लिखे और वॉटरकलर से चित्रकारी भी की। दरअसल अंद्रेटा कलाकारों की एक पीढ़ी के लिये संस्कृति और नाट्य कला का केंद्र बन गया था। अंद्रेटा में कला, नाटक और ग्रामीण माहौल रहने के दर्शन जैसे विषयों पर कई विचार-गोष्ठियों का आयोजन हुआ करती थीं जिसमें विभिन्न कलाओं से जुड़े वरिष्ठ लोग हिस्सा लिया करते थे।

नोरा रिचर्ड्स थिएटर फेस्टिवल

सन 1970 में पंजाबी विश्विद्यालय, पटियाला, ने नोरा को डी.लिट की उपाधि से सम्मानित किया और उन्हें विश्विद्यालय का फ़ेलो बनाया। एक साल बाद तीन मई सन 1971 में उनका निधन हो गया। वुडलैंड रिट्रीट में उनकी क़ब्र के ऊपर लगे पत्थर पर लिखा है,“रेस्ट वियरी हार्ट-दाय वर्क इज़ डन (ए थकेमांदे दिल आराम कर, तेरा काम पूरा हुआ)।” सन 1990 के दशक में पंजाब विश्विद्यालय, पटियाला, ने नोरा के निवास को पंजाब सरकार का हेरिटेज स्मारक घोषित कर, इसे इसके मौलिक रुप में बहाल किया। बी.सी. सन्याल की बेटी अंबा ने अपने प्रसिद्ध वास्तुकार पति के.टी.रविंद्रन के साथ मिलकर एक कलाकार के गांव अंद्रेटा के धूमिल पड़ गये अलौकिक सौंदर्य और सपने की अलख फिर जगाने के लिये नोरा सेंटर फ़ॉर द आर्ट्स की शुरुआत की।

बी सी सन्याल द्वारा बनाई गई एक पेंटिंग

नोरा द्वारा स्थापित छोटे से थियेटर में आज भी पंजाबी विश्विद्यालय के छात्र नाटक करते हैं। वे हर साल 29 अक्टूबर को नोरा के जन्मदिन पर नाटकों का मंचन करते हैं। इसके अलावा उनकी पुण्य तिथि पर पंजाब विश्विद्यालय के छात्र विशेष समारोह का आयोजन करते हैं। अंद्रेटा आज भी विभिन्न क्षेत्रों के कलाकारों को आकर्षित करता है। मशहूर लोखक खुशवंत सिंह ने एक बार इस स्थान का वर्णन कुछ इस तरह से किया था- यहां नाटक, चित्रकारी, मिट्टी के पात्रों और लेखन का विवाह होता है।”

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