विचारधारा हो या हथियार, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं का योगदान कई मायनों में महत्वपूर्ण रहा है। लेकिन आज तक लोग उनके योगदान से अनजान हैं। लैंगिक असमानता जैसी सामाजिक बुराइयों के ख़िलाफ़ मुहिम चलाने के अलावा उन्होंने भी पुरुषों की तरह सड़कों पर जुलूस निकाले, औपनिवेशिक अधिकारियों की गोलियां खाईं, मार-पीट सही, क्रठोर कारावास का सामना किया, और एक बड़े उद्देश्य के लिए अपने जीवन का बलिदान किया।
इन्हीं महिलाओं में गुलाब कौर भी थीं, जो ग़दर दी धी (ग़दर की बेटी) के नाम से मशहूर थीं।
क्रांतिकारी विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने अपना परिवार छोड़ दिया, और ग़दर आंदोलन में शामिल हो गईं। वह लाहौर षड्यंत्र केस (सन1915) में शामिल थीं, और गिरफ़्तारी के बाद उन्हें अमानवीय यातना का सामना करना पड़ा था। अफ़सोस की बात है, कि उसके जीवन के बारे में ज़्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है।
सन 1890 में पंजाब के संगरूर के बख़्शीवाला गांव में एक ग़रीब किसान परिवार में जन्मी गुलाब की शादी कम उम्र में ही मान सिंह नाम के व्यक्ति से हो गई थी। अंग्रेज़ों की क्रूर कृषि नीतियों से तंग आकर अन्य पंजाबी किसानों की तरह मानसिंह भी गुलाब के साथ बेहतर जीवन के लिए अमरीका रवाना हो गए। इस दंपत्ति ने सन 1914 की शुरुआत में अमेरिका का रुख़ किया और बीच में वे कुछ दिनों के लिए फ़िलीपींस के मनीला शहर में ठहर गए।
गुलाब कौर के लिए मनीला के पड़ाव ने क्रांति का रास्ता खोल दिया। यहां गुलाब बाबा हफ़ीज़ अब्दुल्ला (फज्जा), बाबा बंता सिंह और बाबा हरनाम सिंह (टुंडीलत) जैसे प्रमुख नेताओं के भाषणों से प्रभावित हो गईं। ये लोग मनीला में ग़दर पार्टी की शाखा का नेतृत्तव कर रहे थे। सन 1913 में सैन फ्रांसिस्को में लाला हरदयाल, पंडित कांशी राम और सोहन बखना द्वारा स्थापित की गई इस पार्टी का उद्देश्य बर्लिन, हांगकांग और मनीला जैसी जगहों सहित विश्वभर में ब्रिटिश साम्राज्य के अत्याचार के ख़िलाफ़ विदेशों मे रहने भारतीयों को एकजुट करना था।
लगभग इसी समय आव्रजन पर पाबंदी की वजह से सिख प्रवासियों को ले जा रहे कोमागाटा मारू नाम के एक जहाज़ को कनाडा नहीं आने दिया गया, और उसे कलकत्ता लौटना पड़ा था। इस घटना और मौजूदा कठोर आर्थिक हालात की वजह से गुलाब कौर ने ग़दर पार्टी में शामिल होने का फ़ैसला किया।
पहले मिशन के तहत गुलाब को अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ हथियार उठाने के लिए भारतीयों को प्रेरित करने के उद्देश्य से हांगकांग के ज़रिये भारत लौटने को कहा गया। उस समय पहला विश्व युद्ध (1914-1919) चल रहा था, और कई भारतीय क्रांतिकारियों ने इस मौक़े का फ़ायदा उठाने का निर्णय लिया था। इस उद्देश्य़ को पूरा करने के लिए गुलाब का परिवार भी उन्हें डिगा नहीं सका। जब उनके पति मान सिंह ने उन्हें रोकने की कोशिश की , तो गुलाब ने ग़ुस्से में अपनी शादी की चूड़ियाँ उतार दीं, और पति और ससुराल वालों के साथ संबंध तोड़ लिए। इसके बाद मान सिंह अमेरिका रवाना हो गए और फिर वे दोनों एक-दूसरे से कभी नहीं मिले।
इसके बाद, गुलाब अगस्त,सन 1914 में हांगकांग से रवाना हुईं, जहां उनकी मुलाक़ात सैन फ्रांसिस्को से आए ग़दर पार्टी के अन्य क्रांतिकारियों से हुई। आज़ादी के जज़्बे से भरी गुलाब ने देशभक्ति के तराने गाकर सुनाए और भारतीयों को ग़दर पार्टी के अद्देश्य में योगदान करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए जोशीले भाषण दिए। इसी से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी भी है। हांगकांग में रहने के दौरान जब उनका सामना कुछ ऐसे भारतीय पुरुषों से हुआ जो आंदोलन में शामिल होने से हिचक रहे थे, तो गुलाब ने उन्हें अपनी शादी की चूड़ियां सौंपते हुए कहा, कि अगर वे भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग नहीं ले सकते हैं तो उन्हें ये चूड़ियां पहन लेनी चाहिए।
कुछ दिन बाद गुलाब, पचास क्रांतिकारियों के साथ तोशा मारू जहाज़ से कलकत्ता रवाना हो गईं। इससे पहले सितंबर,सन 1914 में कोमागाटा मारू जहाज़ कलकत्ता पहुंच चुका था। जहाज़ के पहुंचते ही वहां क़त्लेआम शुरू हो गया था और गिरफ़्तारियां भी हुई थीं। इस घटना ने न सिर्फ़ ग़दर पार्टी के सदस्यों के मक़सद को मज़बूती दी थी, साथ ही अंग्रेज़ों को भी सतर्क कर दिया था। अंग्रेज़ों को, हांगकांग में मौजूद उनकी गुप्त पुलिस ने ग़दर पार्टी के क्रांतिकारियों की गतिविधियों के बारे में जानकारी दी थी। इसीलिए ग़दर पार्टी के क्रांतिकारियों के कलकत्ता पहुंचने की सूचना मिलने पर अंग्रेज़ों का शक़ पक्का हो गया। ग़दर पार्टी के कलकत्ता पहुंचने से पहले ही अंग्रेज़ों ने ग़दर पार्टी के क्रांतिकारियों की गिरफ़्तारी और हिरासत में लेने का “प्रवेश अध्यादेश” जारी कर दिया था।
25 अक्टूबर,सन 1914 को कलकत्ता पहुंचने पर ग़दर पार्टी के सदस्यों सहित कुल आठ हज़ार में से चार सौ क्रांतिकारियों को हिरासत में ले लिया गया था। उनमें से ढ़ाई हज़ार को उनके गांवों में नज़रबंद कर दिया गया, और पांच हज़ार को रिहा कर दिया गया। हालांकि कुछ क्रांतिकारी अपने हथियार समुद्र में फेंककर भागने में सफल हो गए थे । अक्टूबर,सन 1914 के अंत तक करतार सिंह सराभा और गुलाब कौर अपने साथियों के साथ भागकर पंजाब पहुंच गए, बाद में पंडित कांशी राम और वीजी पिंगले भी वहां पहुंच गए।
इस घटना से हताश हुए बिना अन्य सदस्यों ने तितर-बितर हुए क्रांतिकारियों को एकजुट करने का काम शुरु कर दिया, जबकि दूसरी ओर गुलाब कपूरथला, होशियारपुर और जालंधर में सक्रिय हो गईं। इस बीच आंदोलन ज़ोर पकड़ने लगा था, और गुलाब पंजाब में लोगों को अंग्रेजों के ख़िलाफ़ हथियार उठाने के लिए प्रेरित करने के साथ-साथ ग़दर पार्टी की प्रिंटिंग प्रेस का कामकाज भी देखने लगीं थीं। गुलाब ने लोगों में जागरूकता पैदा करने और अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ हथियार उठाने के लिए प्रेरित करने के लिए इंक़लाबी साहित्य बांटना शुरू कर दिया था। इसके अलावा, उन्होंने एक पत्रकार के भेस में हथियारों और गोला-बारूद की तस्करी भी की जो ज़्यादातर उनके बंगाली साथियों से हासिल किए गए थे।
नवंबर,सन 1914 के अंत तक, लाहौर और फ़िरोज़पुर से सैनिकों को इकट्ठा किया गया और क्रांतिकारी कई बार पर ननकाना साहिब और खासा (पंजाब) में उनसे मिले। इधर, 26 नवंबर,सन 1914 को फ़िरोज़पुर छावनी में पहले हमले की योजना बनाई गई, लेकिन लाहौर की 23वीं घुड़सवार सेना के आने में देर हो गई। इसी वजह से योजना 21 फ़रवरी,सन 1915 तक टाल दी गई।
इसी बीच राश बिहारी बोस और सचिंद्रनाथ सान्याल भी पंजाब पहुंचे और उन्होंने बम बनाने के कारख़ाने लगाए। दुर्भाग्य से, पंडित जगत राम को ब्रिटिश गुप्तचर सेवा ने पेशावर छावनी से गिरफ्तार कर लिया। जगत राम को पेशावर के आदिवासियों से संपर्क करने का काम सौंपा गया था । कई दिनों की यातना के बाद आख़िरकार जगत राम ने तमाम राज़ उगल दिए।
ज़्यादा से ज़्यादा गिरफ्तारियां करने और आंदोलन की योजनाओं को समझने के लिए पंजाब पुलिस के मुख़बिरों को ग़दर पार्टी में घुसाया गया। इस दौरान पार्टी की पैठ पंजाब में बढ़ने लगी थी। जनवरी,सन 1915 तक 23वीं घुड़सवार सेना के हथियार छीन कर उसे रावलपिंडी भेज दिया गया। गुलाब कौर सहित ग़दर पार्टी के कई लोगों को लाहौर और आसपास के क्षेत्रों से भारत रक्षा अधिनियम, 1915 के तहत देशद्रोह के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया गया।
लाहौर षड्यंत्र केस (1915) में गुलाब को लाहौर के क़िले में दो साल के लिए क़ैद कर दिया गया, जहां उन्हें भयानक यातनाएं दी गईं। इस बीच उनके कुछ साथी भाग गए, कुछ को उम्रक़ैद की सज़ा दे दी गई और कुछ को फांसी पर लटका दिया गया। पहला विश्व युद्ध ख़त्म होने के बाद गुलाब कौर को रिहा कर दिया गया, लेकिन उनकी सेहत खराब हो चुकी थी। उसके बाद के जीवन के बारे में कोई ख़ास जानकारी नहीं मिलती । सन 1931 में उनका निधन हो गया था। लेकिन कुछ दस्तावेज़ों में दावा किया गया है, कि उनका निधन सन 1941 में हुआ था।
दुर्भाग्य से गुलाब कौर की क़ुर्बानी का सम्मान करने के लिए शायद ही कोई प्रयास किया गया हो। लेकिन उनके गांव बख़्शीवाला में एक स्टेडियम का नाम उनके नाम पर ज़रूर रखा गया है। उनके जीवन पर आधारित एक किताब, ग़दर दी धी (ग़दर की बेटी/2014/पंजाबी) लिखी गई है। गुलाब कौर सहित ग़दर पार्टी के क्रांतिकारियों की याद और सम्मान में हर साल नवंबर के महीने में जालंधर (पंजाब) में “मेला गदरी बंदां दा” का आयोजन किया जाता है। इसमें कई प्रगतिशील लेखक, कार्यकर्ता और विचारक शामिल होते हैं।.
आजकल ,दिल्ली की सिंघू और टिकरी सीमाओं के साथ जिन कुल पांच जगहों पर किसान आंदोलन चल रहा है, उन सभी के नाम प्रसिद्ध लोगों के नाम पर हैं। दिलचस्प बात यह है, कि इनमें एक का नाम “बीबी गुलाब कौर” नगर है।
हम आपसे सुनने के लिए उत्सुक हैं!
लिव हिस्ट्री इंडिया इस देश की अनमोल धरोहर की यादों को ताज़ा करने का एक प्रयत्न हैं। हम आपके विचारों और सुझावों का स्वागत करते हैं। हमारे साथ किसी भी तरह से जुड़े रहने के लिए यहाँ संपर्क कीजिये: contactus@livehistoryindia.com
Join our mailing list to receive the latest news and updates from our team.